Monday 26 January 2015

MAN@DIL@HEART

पियरी जिन्दगी 
कावि काम कवि जयदा 
हमदम बाजे 
अन्दर उर बहार से सुन 
मन हमदम हमारा मन 

विजयपथ होना चाहीहैं विजय की बातें 
हमदर्द की लिए 
अनजाने रहो मैं 
दुन्ठा रही रही के साते 
कोही नहीं सुच के पीछे 
मन हमदम मन

पियरी जिन्दगी 
कावि काम कवि जयदा 
हमदम बाजे 
अन्दर उर बहार से सुन 
मन हमदम हमारा मन

खुआ हुआ आलम 
खुआ हुआ दिल 
न जाने क्यू धुनता रही सुच की और 
जहा पे हमारा घर 
हम और तुम 
मन हमदम हमारा मन 


पियरी जिन्दगी 
कावि काम कवि जयदा 
हमदम बाजे 
अन्दर उर बहार से सुन 
मन हमदम हमारा मन!
 

No comments:

Post a Comment